नजरिया अब बच्चों की शिक्षा पर भी ध्यान देने की जरूरत है
शमिका रवि – प्रधानमंत्री की इकोनॉमिक एडवाइजरी काउंसिल की पूर्व सदस्य
पूरे भारत के स्तर पर देखें तो जिस दर से कोरोना संक्रमण घट रहा था, वह लगभग डेढ़ महीने से स्थिर बनी हुई है। शुरुआत में इसमें तेजी से गिरावट आई थी। जिन देशों में कोरोना का डेल्टा वैरिएंट फैल रहा है, वहां तेजी से संक्रमितों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन उतनी ही तेजी से घट भी रही है। लेकिन भारत में यह मई मध्य से घटना शुरू हुई, जो घटती रही। लेकिन पिछले एक महीने से रोजाना आने वाले मामले घट नहीं रहे हैं। अभी केरल और उत्तर-पूर्वी राज्यों में काफी मामले आ रहे हैं। जब तक यहां नहीं घटेंगे, तब तक भारत में 35 से 40 हजार के बीच केस आते रहेंगे। उत्तर-पूर्व में मिजोरम, मणिपुर, अरुणाचल, सभी जगह संक्रमण दर काफी ज्यादा है। हालांकि पिछले एक हफ्ते से हम देख रहे हैं कि एक्टिव केस घटने लगे हैं।
इस सभी का अर्थ यह भी लगाया जा सकता है कि कोरोना की तीसरी लहर की आशंका काफी हद तक घट रही है। अगर मौजूदा दर से ही केस घटते रहे तो यह आशंका और कम हो जाएगी। हम सोच रहे थे कि चूंकि उत्तर-पूर्वी राज्यों और केरल में केस बढ़ रहे हैं, तो शायद बाकी जगह भी बढ़ें, लेकिन बाकी जगह संक्रमण उतना नहीं फैल रहा। ऐसे में सवाल उठ सकता है कि क्या टेस्टिंग कम हुई है? हालांकि ऐसा नहीं हुआ। केरल में टेस्टिंग थोड़ी कम हुई थी लेकिन कुलमिलाकर अभी भी देश में 17-18 लाख टेस्ट रोज हो रहे हैं। कई राज्यों में काफी टेस्टिंग हो रही है, जैसे कर्नाटक, तमिलनाडु, बिहार, आदि। तो आंकड़े तो फिलहाल यही बता रहे हैं कि कोरोना की तीसरी लहर नहीं आएगी। चूंकि काफी टेस्टिंग के बावजूद, केस कम हो रहे हैं, जिससे लगता है कि फिलहाल लहर का खतरा नहीं है।
इस सबके साथ हम मोबिलिटी यानी लोगों का आवागमन भी देखें। देश में सभी जगह मोबिलिटी बढ़ी है। यहां तक कि केरल में भी। इसे दो तरीके से देखा जाता है। पहला, जब मोबिलिटी बहुत ज्यादा बढ़े और साथ में एक्टिव केस भी बढ़ें, जैसा दूसरी लहर में हुआ, तब यह खतरनाक है। लेकिन जब केस घट रहे हैं और मोबिलिटी बढ़ रही है, तो इससे अनुमान लगा सकते हैं कि राज्य स्तर पर उतना खतरा नहीं है, लोगों में उतना डर नहीं है। हालांकि इसपर हाई फ्रिक्वेंसी डेटा तो महीनेभर या तिमाही में मिलेगा, लेकिन फिर भी मोबिलिटी यह पता करने का अच्छा तरीका है कि स्थानीय स्तर पर लोगों में कोरोना का कितना डर है।
इधर थोड़ी चिंता की बात यह है कि देश में कोविड टीकाकरण की गति बहुत नहीं बढ़ी है। फिलहाल देश में 44% योग्य वयस्कों को टीके का कम से कम एक डोज तो मिल गया है। कई ऐसे राज्य भी हैं, जहां आधे से ज्यादा वयस्कों को कम से कम एक डोज लग चुका है, जैसे दिल्ली, राजस्थान, मध्यप्रदेश, केरल आदि। वहीं ऐसे बड़े राज्य भी हैं, जहां टीकाकरण का स्तर बढ़ाना बहुत जरूरी है, जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल। यहां यह जानना भी जरूरी है कि विदेश के आंकड़ों को देखकर समझ आ रहा है कि वैक्सीन से संक्रमण नहीं रुक रहा है, कई लोग संक्रमित हो रहे हैं। लेकिन इससे आईसीयू में भर्ती होने के मामले और मृत्यु कम हुए हैं। लोगों को संक्रमण हो रहा है, तो वे डर जा रहे हैं कि टीके काम नही कर रहे। लेकिन यह ठीक नहीं है। चाहे कोवैक्सीन हो या कोविशील्ड या फाइजर-मॉडर्ना, किसी की भी वैक्सीन हो, वे गंभीर कोरोना और मृत्य के जोखिम को बहुत कम कर रही हैं।
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तीसरी लहर की कम होती आशंका, टीकाकरण तथा अर्थव्यवस्था की बात के बीच एक अहम मुद्दा पीछे छूट रहा है, वह है बच्चों की शिक्षा। आखिर स्कूल कब तक बंद रखेंगे। राज्य सरकारों को यह सोचना होगा कि छोटे बच्चों के लिए स्कूल कैसे शुरू किए जाएं। बच्चों में अब ‘लॉस ऑफ लर्निंग’ यानी सीखने का नुकसान देखा जा रहा है। उनके लिखने-पढ़ने का और गणित का कौशल कमजोर हो रहा है। यह पूरी एक पीढ़ी का बहुत बड़ा नुकसान हो रहा है। अभी इसका असर समझ नहीं आ रहा है, लेकिन आने वाले समय में नुकसान समझ आएगा। इसकी जिम्मेदारी स्कूल कभी नहीं लेंगे, राज्य सरकारों को ही उन्हें प्रोत्साहित करना होगा। शिक्षा पर कोविड के असर की बात बहुत कम हो रही है, जिसपर ध्यान देना बहुत ज्यादा जरूरी है।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
Source: Dainik Bhaskar